Social service quotes by famous poets and social workers In Hindi. उनकी जुबानी जिन्होंने समाज को अपनी कविताओं द्वारा और अपनी पूरी जिंदगी देकर समाज को प्रगति की राह दिखाई। एक जूट रखा। इस पोस्ट में आपको ऐसे ही महान आत्माओं के कोट्स मिलेंगे जो हैं।
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Social service quotes by famous poets and social workers In Hindi
Gosvami-Tulsi-Das-social-service-quotes
वेद, शास्त्र और पुराणों में प्रसिद्ध है और Jagat जानता हैकि सेवा बड़ा कठिन धर्म है।— Goswami Tulsidas गोस्वामी तुलसीदास
Jaysankar-Prashad-social-service-quotes
सेवा, परोपकार और दु:खी की Sahayataमनुष्य के प्रधान कर्तव्य हैं।– JayShankar Prasad जयशांकर प्रसाद
Premchand-social-service-quotes
सेवा ही वह सिमेण्ट है, जो दंपति की जीवनपर्यतSneh और साहचर्य में जोड़े रख सकता है,जिस पर बड़े-बड़े आघातों का भी कोई असर नहीं होता।जहाँ सेवा का अभाव है वहीं Vivah-विच्छेद है, परित्याग है,अविश्वास है। –Premchand प्रेमचन्द
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सेवा मनुष्य की स्वाभाविक वृत्ति है।सेवा ही उसके Jivan का आधार है।– Premchand प्रेमचन्द
Ramkrishn-paramhansh-social-service-quotes
बन्धुभाव से की हुई Seva की अपेक्षा आत्मभावसे की हुई सेवा उत्तम है।– Ramkrishn Pramhans रामकृष्ण परमहंस
Sardar-ballav-bhai-patel-social-service-quotes
गरीबों की सेवा ही ईश्वर की सेवा है।– Sardar Vallbhbhai Patelसरदार वल्लभभाई पटेल
Swami-Ramdas-social-service-quotes
हमारी हर सेवा प्रभु की सेवा है।– Swami Ramdas स्वामी रामदास
Hamari Hr Seva Prabhu Ki Seva Hai
Valmiki-social-service-quotes
सेवा से शत्रु भी मित्र हो जाता है।– Valmiki वाल्मीकि
Vinova-Bhave-social-service-quotes
सेवा के लिए पैसे की Jarurat नहीं होती, जरूरत हैअपना संकुचित जीवन छोड़ने की,गरीबों से एकरूप होने की।–Vinoba Bhave विनोबा भावे
Social service quotes
लाखों मूंगों के हृदय में ईश्वर विराजमान है। मैं Usake
सिवा अन्य किसी ईश्वर की नहीं मानता!
मैं इन लाखों की सेवा द्वारा उस ईश्वर की पूजा करता हूँ।
– Mahatma Gandhi महात्मा गांधी
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सेवा हृदय और Aatma को पवित्र करती है।
सेवा से ज्ञान प्राप्त होता है, और यही जीवन का लक्ष्य है।
–Swami Shivanand स्वामी शिवानन्द
जो यह सोचते हैं कि किसी प्रकार की Seva करने योग्य नहीं हैं,
वे कदाचित् पशुओं और वृक्षों को भूल जाते हैं।
— Aarandel आरंदेल
बिना Pradarshan के जो सेवा करता है
वह शीघ्र ऊँचाई पर पहुँच जाता है।
– Vrindavanlal Varma वृन्दावनलाल वर्मा
सेवामार्ग भक्तिमार्ग से भी ऊँचा है।
–Sudarshan सुदर्शन
पूजा यथा Samay न प्रभु-नाम-जप; होता शरीर सुख से न कभी मिलाप ।
न स्वार्थ ही न परमार्थ-विचार-बात: सेवा किये सब सुखों पर वज्रपाद।
– Mahaveer Prasad Dwivedi महावीर प्रसाद द्विवेदी
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Social service quotes by famous poets and social workers In Hindi
समाज-सेवा समाज की सेवा अलग से कोई कार्य नहीं होता। मनुष्य अपने कर्तव्यों को अपनी शक्ति के अनुसार ईमानदारी से पूर्ण करता चला जाय तो यही उसकी समाज सेवा है। सब अपने कार्य स्वतः करते चले तो कभी दु:ख की छाया नहीं पड़े, किन्तु ऐसा होता नहीं है।
आराम, ऐश्वर्य और बड़प्पन की भावना सामाजिक उत्थान के साथ मनुष्य में विकसित होती गईं। कुछ को मूर्खता ने जकड़ा तो कुछ को स्वार्थ ने, फलतः वह कर्त्तव्यच्युत हो गया। ऐसे ही कर्त्तव्यच्युत लोगों के कार्यो को पूरा करने के लिए कुछ लोगों को अतिरिक्त कार्य करना पड़ता है।
जो अपने कर्तव्यों को पूरा करते हुए अन्य का सहयोग करते हैं, वे ही समाज-सेवी हैं। आधुनिक समाज की स्थिति विकृत है। प्रत्येक प्राणी अपने कर्त्तव्य से पलायन कर रहा है। वह समाज निर्माण के कार्यों और उद्देश्यों को भूल गया है और उस सम्बन्ध में चिन्तन करना ही नहीं चाहता।
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सर्वत्र असहयोग का बोलबाला है। सहायता देकर किसी को आगे बढ़ाने के बदले लोग पाँव खींचकर नीचे गिरा देना चाहते हैं। उनका कहना है कि समाज ने उनके साथ क्या किया है कि वह समाज के लिए सोचे ? किन्तु इस तरह का चिन्तन दोषपूर्ण है। यह माना जा सकता है कि कुछ व्यक्तियों ने कुछ व्यक्तियों के साथ अपेक्षित
कर्त्तव्य को नहीं पूरा किया, उपेक्षा का भाव दिखाया किन्तु इसे ही व्यापक सामाजिक भावना की संज्ञा नहीं दी जा सकती। समाज विशाल है, इसके कार्य व्यापक हैं, इसका उद्देश्य महान है। इसके अतिरिक्त समाज सेवा का भी कार्य करना होगा।
समाज की प्रगति एक समस्या हो गई है। समाज टूटन का शिकार हो गया है, इसमें बिखराव आता जा रहा है। कई असामाजिक तत्व, विदेशी शक्तियाँ भारतीय समाज को तोड़ने के लिए कटिबद्ध हैं। ऐसे तत्व अपने कार्य तो नहीं करते, दूसरे को भी उनके कर्त्तव्य पूरा नहीं करने देते। वे स्वयं समाज विरोधी कार्य करते हैं
Social service quotes by famous poets and social workers In Hindi
और दूसरों को भी वैसा ही करने के लिए प्रेरित करते हैं। ऐसी दुखद स्थिति में ईमानदार व्यक्ति का कार्य दोहरा और द्विगणित हो जाता है। आवश्यकता है निष्काम भाव से नि:स्वार्थ भाव से, समाज की सेवा करने की। आपसी सहयोग को और अधिक बढ़ाने की। इस सहयोग को इतना गहरा करने की आवश्यकता है
कि अन्य सामाजिक कार्य की आवश्यकता ही नहीं पड़े। एक उदाहरण से हम इसे समझ सकते हैं। एक मुहल्ले के नुक्कड़ का बिजली का बल्ब फ्यूज कर जाता है। उसे बदलना म्युनिसिपैलिटि का कार्य है। उसके आदमी आकर बल्व बदलेंगे किन्तु कोई खबर दे, यह आवश्यक है। इसके साथ यह भी आवश्यक है
कि म्यूनिसिपैलिटी के कर्मचारी तत्परता से, नया बल्व लगा दें। यह एक बात है। तस्वीर का दूसरा रुख भी है। उस मुहल्ले का कोई व्यक्ति भी नया बल्व लगाकर बदल सकता है। एक मुहल्ले में एक बार एक दूसरी स्थिति देखने में आई। रात में एक सज्जन लौटे तो बल्व फ्यूज पाया।
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दूसरे दिन ऑफिस से लौटते समय वे एक नया बल्व खरीदकर लाये कि वे उस बल्व को बदल दें। जब नुक्कड़ पर पहुँचे तो देखा कि उनके पड़ोसी सीढ़ी पर चढ़े बल्व बदल रहे हैं। यह हुई सामाजिक जागरुकता। ऐसी ही जागरुकता अगर प्रत्येक व्यक्ति में हो तो समाज ऊंचाइयों को छू सकता है। .
किन्तु ऐसे उदाहरण दुर्लभ हो गये हैं। सामाजिक जागरुकता के स्थान पर समाज में विरोध फैल गया है। व्यक्तिगत उत्थान और व्यक्तिगत स्वार्थ को महत्व दिया जा रहा है। स्वार्थ लोलुपता ऐसी बढ़ी है कि व्यक्ति अपने सहज मानवीय कर्त्तव्यों को भी भुला बैठा है। अतः ऐसे लोगों की आवश्यकता आ पड़ी है
जो अपने सुख को भुलाकर अपना सारा समय, अपनी सारी ऊर्जा समाज की सेवा में लगा सके। ऐसे समाज सेवी अगर निःस्वार्थ और निष्काम भाव से अपना कर्त्तव्य पूरा करें तभी सामाजिक व्यवस्था ठीक होगी, कुरीतियाँ खत्म होंगी और उत्थान हो सकेगा।
Social service quotes by famous poets and social workers In Hindi
समाज सेवा के लिए समाजसेवी बनना आवश्यक नहीं है। समाज सेवा के विभिन्न रुप होते है। किसी रुप में किसी ढंग से समाज-सेवा का कार्य किया जा सकता है। आवश्यकता है तो मात्र ईमानदारी और समर्पण की।
आज समाज-सेवा भी ढोंग हो गया है। झूठी प्रसिद्धि, झूठे यश की आकांक्षा,
कितने असामाजिक तत्वों को भी सामाजिक कार्य के लिए प्रेरित करती है। किन्तु इस प्रेरणा के पीछे व्यक्तिगत स्वार्थ ही होता है। इस ढोंग. की पराकाष्ठा यह है कि शिक्षा-प्रसार का कार्य भी व्यावसायिक किया जा रहा है। थोड़ी वाहवाही मिल जाय या दूसरों को प्रसन्न कर अपना स्वार्थ सिद्ध कर लिया जाय यह समाज सेवा नहीं है।
समाज की व्यापकता की भाँति ही समाज-सेवा की भी व्यापकता है। इसे पूरा करने में असीम धैर्य और अतुल मानसिक शक्ति की आवश्यकता है। सामाजिक विच्छृखलता पर दृष्टिपात करते ही समाज सेवा की आवश्यकता स्पष्ट हो जाती है और व्रत के रूप में इसे धारण कर पूरा करनेवाले समाज-सेवियों की अनिवार्यता भी स्पष्ट हो जाती है।